पद्मपुराण ‘ पेज -12’
यदुवंश के अन्तर्गत क्रोष्टु आदि के वंश तथा श्रीकृष्णावतार का वर्णन
पुलस्त्यजी कहते हैं-राजेन्द्र ! अब यदुपुत्र क्रोष्टु के वंश का, जिसमें श्रेष्ठ पुरुषों ने जन्म लिया था, वर्णन सुनो । क्रोष्टु के ही कुल में वृष्णिवंशावतंस भगवान् श्रीकृष्ण का अवतार हुआ है। क्रोष्टु के पुत्र महामना वृजिनीवान् हुए । उनके पुत्र का नाम स्वाति था। स्वाति से कुशङ्कु का जन्म हुआ । कुशङ्कु से चित्ररथ उत्पन्न हुए, जो शशविन्दु नाम से विख्यात चक्रवर्ती राजा हुए। शशविन्दु के दस हजार पुत्र हुए। वे बुद्धिमान् सुन्दर, प्रचुर वैभवशाली और तेजस्वी थे । उनमें भी सौ प्रधान थे। उन सौ पुत्रों में भी, जिनके नाम के साथ ‘पृथु’ शब्द जुड़ा था, वे महान् बलवान् थे । उनके पूरे नाम इस प्रकार हैं–पृथुश्रवा, पृथुयशा, पृथुतेजा, पृथूद्भव, पृथुकीर्ति और पृथुमति । पुराणों के ज्ञाता पुरुष उन सबमें पृथुश्रवा को श्रेष्ठ बतलाते हैं। पृथुश्रवा से उशना नामक पुत्र हुआ, जो शत्रुओं को सन्ताप देने वाला था । उशना का पुत्र शिनेयु हुआ, जो सज्जनों में श्रेष्ठ था । शिनेयु का पुत्र रुक्मकवच नाम से प्रसिद्ध हुआ, वह शत्रुसेना का विनाश करने- वाला था। राजा रुक्मकवचने एक बार अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया और उसमें दक्षिणा के रूप में यह सारी पृथ्वी ब्राह्मणों को दे दी । उसके रुक्मेषु, पृथुरुक्म, ज्यामघ, परिघ और हरि-ये पाँच पुत्र उत्पन्न हुए, जो महान् बलवान् और पराक्रमी थे । उनमें से परिध और हरि को उनके पिता ने विदेह देश के राज्य पर स्थापित किया । रुक्मेषु राजा हुआ और पृथुरुक्म उसके अधीन होकर रहने लगा । उन दोनों ने मिलकर अपने भाई ज्यामघ को घर से निकाल दिया । ज्यामघ ऋक्षवान् पर्वत पर जाकर जंगली फल-मूलों से जीवन-निर्वाह करते हुए वहाँ रहने लगे । ज्यामघ की स्त्री शैच्या बड़ी सती-साध्वी स्त्री थी । उससे विदर्भ नामक पुत्र हुआ । विदर्भ से तीन पुत्र हुए– क्रथ, कैशिक और लोमपाद । राजकुमार क्रथ और कैशिक बड़े विद्वान् थे तथा लोमपाद परम धर्मात्मा थे । तत्पश्चात् राजा विदर्भ ने और भी अनेकों पुत्र उत्पन्न किये, जो युद्ध- कर्म में कुशल तथा शूरवीर थे । लोमपाद का पुत्र बभ्रु और बभ्रु का पुत्र हेति हुआ । कैशिक के चिदि नामक पुत्र हुआ, जिससे चैद्य राजाओं की उत्पत्ति बतलायी जाती है । विदर्भ का जो क्रथ नामक पुत्र था, उससे कुन्ति का जन्म हुआ, कुन्ति से धृष्ट और धृष्ट से पृष्ट की उत्पत्ति हुई । पृष्ट प्रतापी राजा था। उसके पुत्र का नाम निर्वृति था । वह परम धर्मात्मा और शत्रुवीरों का नाशक था । निर्वृति के दाशाई नामक पुत्र हुआ, जिसका दूसरा नाम विदूरथ था । दाशार्ह का पुत्र भीम और भीम का जीमूत हुआ । जीमूत के पुत्र का नाम विकल था । विकल से भीमरथ नामक पुत्र की उत्पत्ति हुई । भीमरथ का पुत्र नवस्थ, नवरथ का दृढरथ और दृढरथ का पुत्र शकुनि हुआ । शकुनि से करम्भ और करम्भ से देवरात का जन्म हुआ । देवरात के पुत्र महायशस्वी राजा देवक्षत्र हुए देवक्षत्र का पुत्र देवकुमार के समान अत्यन्त तेजस्वी हुआ । उसका नाम मधु था । मधु से कुरुवश का जन्म हुआ । कुरुवश के पुत्रका नाम पुरुष था । वह पुरुषों में श्रेष्ठ हुआ । उससे विदर्भकुमारी भद्रवती के गर्भ से जन्तु का जन्म हुआ । जन्तु का दूसरा नाम पुरुद्वसु था। जन्तु की पत्नि का नाम वेत्रकी था । उसके गर्भ से सत्त्वगुणसम्पन्न सात्वत की उत्पत्ति हुई। जो सात्वतवंश की कीर्ति का विस्तार करने वाले थे। सत्वगुण- सम्पन्न सात्वत से उनकी रानी कौसल्या ने भजिन, भजमान, दिव्य राजा देवावृध, अन्धक, महाभोज और वृष्णि नाम के पुत्र को उत्पन्न किया । इनसे चार वंशों का विस्तार हुआ । उनका वर्णन सुनो । भजमान की पत्नी सृञ्जयी, कुमारी सृञ्जयी के गर्भ से भाज नामक पुत्र की उत्पत्ति हुई | भाज से भाजकों का जन्म हुआ। भाज की दो स्त्रियाँ थीं। उन दोनों ने बहुत-से पुत्र उत्पन्न किये। उनके नाम हैं-विनय, करुण और वृष्णि । इनमें वृष्णि शत्रु के नगरों पर विजय पाने वाले थे | भाज और उनके पुत्र – सभी भाजक नाम से प्रसिद्ध हुए; क्योंकि भजमान से इनकी उत्पत्ति हुई थी।
देवावृध से बभ्रु नामक पुत्र का जन्म हुआ, जो सभी उत्तम गुणों से सम्पन्न था। पुराणों के ज्ञाता विद्वान् पुरुष महात्मा देवावृध के गुण का बखान करते हुए इस वंश के विषय में इस प्रकार अपना उद्द्वार प्रकट करते हैं-‘देवावृध देवताओं के समान हैं और बभ्रु समस्त मनुष्यों में श्रेष्ठ हैं। देवावृध और बभ्रु के उपदेश से छिहत्तर हजार मनुष्य मोक्ष को प्राप्त हो चुके हैं।’ बभ्रु से भोज का जन्म हुआ, जो यज्ञ, दान और तपस्या में धीर, ब्राह्मणभक्त, उत्तम व्रतों का दृढ़तापूर्वक पालन करने वाले, रूपवान् तथा महातेजस्वी थे । शरकान्त की कन्या मृतकावती भोज की पत्नी हुई। उसने भोज से कुकुर, भजमान, समीक और बलबर्हिष—ये चार पुत्र उत्पन्न किये । कुकुर के पुत्र धृष्णु के धृति, धृति के कपोतरोमा, कपोतरोमा के नैमित्ति, नैमित्ति के सुसुत और सुसुत के पुत्र नरि हुए। नरि बड़े विद्वान् थे । उनका दूसरा नाम चन्दनोदक दुन्दुभि बतलाया जाता है । उनसे अभिजित् और अभिजित् से पुनर्वसु नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। शत्रुविजयी पुनर्वसु से दो सन्तानें हुई; एक पुत्र और एक कन्या । पुत्र का नाम आहुक था और कन्या का आहुकी। भोजवंश में कोई असत्यवादी, तेजहीन, यज्ञ न करनेवाला, हजार से कम दान करने वाला, अपवित्र और मूर्ख नहीं था । भोज से बढ़कर कोई हुआ ही नहीं । यह भोजवंश आहुक तक आकर समाप्त हो गया । आहुक ने अपनी बहिन आहुकी का ब्याह अवन्ती देश में किया था । आहुक की एक पुत्री भी थी, जिसने दो पुत्र उत्पन्न किये । उनके नाम हैं-देवक और उग्रसेन। वे दोनों देवकुमारी- के समान तेजस्वी हैं। देवक के चार पुत्र हुए, जो देवताओं के समान सुन्दर और बीर हैं । उनके नाम हैं—देववान, उपदेव, सुदेव और देवरक्षक | उनके सात बहिनें थीं, जिनका ब्याह देवक ने वसुदेव जी के साथ कर दिया । उन सातों के नाम इस प्रकार हैं–देवकी, श्रुतदेवा, यशोदा, श्रुतिश्रवा, श्रीदेवा, उपदेवा और सुरूपा । उग्रसेन के नौ पुत्र हुए। उनमें कंस सबसे बड़ा था। शेष के नाम इस प्रकार हैं–न्यग्रोध, सुनामा, कङ्क, शङ्कु, सुभू, राष्ट्रपाल, बद्धमुष्टि और सुमुष्टिक। उनके पाँच बहिनें थीं— कंसा, कंसवती, सुरभी, राष्ट्रपाली और कङ्का । ये सब की सब बड़ी सुन्दरी थीं। इस प्रकार सन्तानों- सहित उग्रसेन तक कुकुर-वंश का वर्णन किया गया ।
[ भोजके दूसरे पुत्र ] भजमान के विदूरथ हुआ, वह रथियों में प्रधान था । उसके दो पुत्र हुए- राजाधिदेव और शूर । राजाधिदेव के भी दो पुत्र हुए- शोणाश्व और श्वेतवाहन । वे दोनों वीर पुरुषों के सम्माननीय और क्षत्रिय- धर्म का पालन करने वाले थे। शोणाश्व के पाँच पुत्र हुए । वे सभी शूरवीर और युद्धकर्म में कुशल थे । उनके नाम इस प्रकार हैं— शमी, गदचर्मा, निमूर्त, चक्रजित् और शुचि। शमी के पुत्र प्रतिक्षत्र, प्रतिक्षत्र के भोज और भोज के हृदिक हुए। हृदिक के दस पुत्र हुए, जो भयानक पराक्रम दिखाने वाले थे। उनमें कृतवर्मा सबसे बड़ा था। उससे छोटों के नाम शतधन्वा, देवार्ह, सुभानु, भीषण, महाबल, अजात, विजात, कारक और करम्भक हैं। देवार्ह का पुत्र कम्बलबर्हिष हुआ, वह विद्वान् पुरुष था। उसके दो पुत्र हुए – समौजा और असमौजा । अजात के पुत्र से भी समोजा नाम के दो पुत्र उत्पन्न हुए । समौजा के तीन पुत्र हुए, जो परम धार्मिक और पराक्रमी थे। उनके नाम हैं–सुदृश, सुरांश और कृष्ण ।
[सात्वत के कनिष्ठ पुत्र ] वृष्णि के वंश में अनमित्र नाम के प्रसिद्ध राजा हो गये हैं, वे अपने पिता के कनिष्ठ पुत्र थे। उनसे शिनि नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । अनमित्र से वृष्णिवीर युधाजित्का भी जन्म हुआ। उनके सिवा दो वीर पुत्र और हुए, जो ऋषभ और क्षत्र के नाम से विख्यात हुए। उनमें से ऋषभ ने काशिराज की पुत्री को पत्नी के रूप में ग्रहण किया । उससे जयन्त की उत्पत्ति हुई। जयन्त ने जयन्ती नाम की सुन्दरी भार्या के साथ विवाह किया। उसके गर्भ ने एक सुन्दर पुत्र उत्पन्न हुआ, जो सदा यज्ञ करने वाला, अत्यन्त धैर्यवान्, शास्त्र और अतिथियो का प्रेमी था। उसका नाम अक्रूर था। अक्रूर यश की दीक्षा ग्रहण करने वाले और बहुत-सी दक्षिणा देने वाले थे। उन्होंने रत्नकुमारी शैब्य के साथ विवाह किया और उसके गर्भ से ग्यारह महाबली पुत्रो को उत्पन्न किया । अक्रूर ने पुनः शूरसेना नाम की पत्नी के गर्भ से देववान् और उपदेव नामक दो और पुत्रों को जन्म दिया। इसी प्रकार उन्होंने अश्विनी नाम की पत्नी से भी कई पुत्र उत्पन्न किये। [विदूरथ की पत्नी ] ऐश्वाकी ने मीढुष नामक पुत्र को जन्म दिया। उनका दूसरा नाम शूर भी था । शूर ने भोजा के गर्भ से दस पुत्र उत्पन्न किये। उनमें आनकदुन्दुभि नाम से प्रसिद्ध महाबाहु बसुदेव ज्येष्ठ थे । उनके सिवा शेष पुत्रों के नाम इस प्रकार हैं- देवभाग, देवश्रवा, अनावृष्टि, कृनि, नन्दि, सकृद्यशाः, श्याम, समीड़ु और शंसस्यु | शूर से पाँच सुन्दरी कन्याएँ भी उत्पन्न हुई, जिनके नाम हैं-श्रुतिकीर्ति, पृथा श्रुतदेवी, श्रुतश्रवा और राजाधिदेवी। ये पाँचों वीर पुत्रों की जननी थी । श्रुतदेवी- का विवाह वृद्ध नामक राजा के साथ हुआ। उसने कारूष नामक पुत्र उत्पन्न किया। श्रुतिकीर्ति ने केकय नरेश के अंश से सन्तर्दन- को जन्म दिया। श्रुतश्रवा नेदिराज की पत्नी थी। उसके गर्भ से सुनिथ (शिशुपाल) का जन्म हुआ। राजाधिदेवी के गर्भ से धर्म की भार्या अभिमर्दिता ने जन्म ग्रहण किया। शूर की राजा कुन्तिभोज के साथ मैत्री थी । अतः उन्होंने अपनी कन्या पृथा को उन्हें गोद दे दिया। इस प्रकार वसुदेव की बहिन पृथा कुन्तिभोज की कन्या होने के कारण कुन्ती के नाम से प्रसिद्ध हुई। कुन्तिभोज ने महाराज पाण्डु के साथ कुन्ती का विवाह किया । कुन्ती से तीन पुत्र उत्पन्न हुए- युधिष्ठिर, भीमसेन और अर्जुन। अर्जुन इन्द्र के समान पराक्रमी है। वे देवताओं के कार्य सिद्ध करने वाले, सम्पूर्ण दानवो के नाशक तथा इन्द्र के लिये भी अवध्य है । उन्होंने दानवों का संहार किया है। बाकी दूसरी रानी माद्रवती (माद्री) के गर्भ ने दो पुत्रों की उत्पत्ति सुनी गयी है, जो नकुल और सहदेव नाम से प्रसिद्ध हैं। वे दोनों रूपवान् और सत्त्वगुणी है । वसुदेव जी की दूसरी पत्नी रोहिणी- ने, जो पुरूवंश की कन्या है, ज्येष्ठ पुत्र के रूप में बलराम को उत्पन्न किया । तत्पश्चात् उनके गर्भ से रणप्रेमी सारण, दुर्धर, दमन और लंबी ठोढ़ीवाले पिण्डारक उत्पन्न हुए । वसुदेव जी की पत्नी जो देवकी देवी हैं, उनके गर्भ से पहले तो महाबाहु प्रजापति के अंशभूत बालक उत्पन्न हुए । फिर [ कंस के द्वारा उनके मारे जाने पर ] श्रीकृष्ण का अवतार हुआ । विजय, रोचमान, वर्द्धमान और देवल- ये सभी महात्मा उपदेवी के गर्भ से उत्पन्न हुए हैं। श्रुतदेवी ने महाभाग गवेषण को जन्म दिया, जो संग्राम में पराजित होनेवाले नहीं थे ।
[ अब श्रीकृष्ण के प्रादुर्भाव की कथा कही जाती है। ] जो श्रीकृष्ण के जन्म और वृद्धि की कथा का प्रतिदिन पाठ या श्रवण करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है । पूर्वकाल में जो प्रजाओं के स्वामी थे, वे ही महादेव श्रीकृष्ण लीला के लिये इस समय मनुष्यों में अवतीर्ण हुए हैं। पूर्वजन्म में देवकी और वसुदेवजी ने तपस्या की थी, उसी के प्रभाव से वसुदेवजी के द्वारा देवकी के गर्भ से भगवान् का प्रादुर्भाव हुआ । उस समय उनके नेत्र कमल के समान शोभा पा रहे थे। उनके चार भुजाएँ थीं। उनका दिव्य रूप चक्र आदि लक्षणों से युक्त भगवान् के दिव्य विग्रह को देखकर बसुदेव जी बोले– ‘प्रभो! इस रूप को छिपा लीजिये। मैं कंस से डरा हुआ हूँ, इसीलिये ऐसा कहता हूँ । उसने मेरे छः पुत्रों को, जो देखने में बहुत ही सुन्दर थे, मार डाला है ।” वसुदेवजी की बात सुनकर भगवान् ने अपने दिव्यरूप को छिपा लिया । फिर भगवान् की आज्ञा लेकर वसुदेव जी उन्हें नन्द के घर ले गये और नन्द गोप को देकर बोले- ‘आप इस बालक की रक्षा करें; क्योंकि इससे सम्पूर्ण यादवों का कल्याण होगा । देवकी का यह बालक जब तक कंस का वध नहीं करेगा, तब तक इस पृथ्वीपर भार बढ़ाने वाले अमङ्गलमय उपद्रव होते रहेंगे। भूतलपर जितने दुष्ट राजा हैं, उन सबका यह संहार करेगा। यह बालक साक्षात् भगवान् है । ये भगवान् कौरव पाण्डवों के युद्ध में सम्पूर्ण क्षत्रियों के एकत्रित होनेपर अर्जुन के सारथि का काम करेंगे और पृथ्वी को क्षत्रिय- हीन करके उसका उपभोग एवं पालन करेंगे और अन्त में समस्त यदुवंश को देवलोक में पहुँचायेंगे । भीष्म ने पूछा – ब्रह्मन् ! ये वसुदेव कौन थे ? यशस्विनी देवकी देवी कौन थीं तथा ये नन्दगोप और उनकी पत्नी महाव्रता यशोदा कौन थीं ! जिसने बालकरूप में भगवान् को जन्म दिया जोर जिसने उनका पालन-पोषण किया, उन दोनों स्त्रियों का परिचय दीजिये । पुलस्त्यजी बोले– राजन् ! पुरुष वसुदेव जी कश्यप हैं और उनकी प्रिया देवकी अदिति कही गयी हैं । कश्यप ब्रह्माजी के अंश हैं और अदिति पृथ्वी का । इसी प्रकार द्रोण- नामक वसु ही नन्दगोप के नाम से विख्यात हुए हैं तथा उनकी पत्नी घरा यशोदा हैं। देवी देवकी ने पूर्वजन्म में अजन्मा परमेश्वर से जो कामना की थी, उसकी वह कामना महाबाहु श्रीकृष्ण ने पूर्ण कर दी। यज्ञानुष्ठान बंद हो गया था, धर्म का उच्छेद हो रहा था; ऐसी अवस्था में धर्म की स्थापना और पापी असुरो का संहार करने के लिये भगवान् श्रीविष्णु वृष्णिकुल में प्रकट हुए हैं । रुक्मिणी, सत्यभामा, नग्नजीत की पुत्री सत्या, सुमित्रा, शब्य, गान्धार राजकुमारी लक्ष्मणा, सुभीमा, मद्रराजकुमारी कौसल्या और विरजा आदि सोलह हजार देवियाँ श्रीकृष्ण की पत्नियाँ हैं । रुक्मिणी ने दस पुत्र उत्पन्न किये। वे सभी युद्धकर्म में कुशल हैं। उनके नाम इस प्रकार है– महाबली प्रद्युम्न, रणशूर चारुदेष्ण, सुचारु, चारभद्र, सदश्व, ह्रस्व, चारुगुप्त, चारुभद्र, चारुक और चारुहास । इनमें प्रद्युम्न सबसे बड़े और चारुहास सबसे छोटे हैं। रुक्मिणी ने एक कन्या को भी जन्म दिया, जिसका नाम चारुमती है । सत्यभामा से भानु, भीमरथ, क्षण, रोहित, दीप्तिमान्, ताम्रबन्ध और जलन्धम- ये सात पुत्र उत्पन्न हुए । इन सातों के एक छोटी बहिन भी है। जाम्बवती के पुत्र साम्ब हुए, जो बड़े ही सुन्दर हैं। ये सौर-शास्त्र के प्रणेता तथा प्रतिमा एवं मन्दिर के निर्माता हैं । मित्रविन्दा ने सुमित्र, चारुमित्र और मित्रविन्द को जन्म दिया। मित्रबाहु और सुनीथ आदि सत्या के पुत्र हैं । इस प्रकार श्रीकृष्ण- के हजारों पुत्र हुए । प्रद्युम्न के विदर्भ कुमारी रुक्मवती- के गर्भ से अनिरुद्ध नामक परम बुद्धिमान् पुत्र हुआ । अनिरुद्ध संग्राम में उत्साहपूर्वक युद्ध करने वाले वीर हैं । अनिरुद्ध से मृगकेतन का जन्म हुआ । राज सुपार्श्व की पुत्री काम्या ने साम्ब से तरस्वी नामक पुत्र प्राप्त किया। प्रमुख बीर एवं महात्मा यादवों की संख्या तीन करोड़ साठ लाख के लगभग है। ये सभी अत्यन्त पराक्रमी और महाबली हैं । उन सबकी देवताओं के अंश से उत्पत्ति हुई है। देवासुर संग्राम में जो महाबली असुर मारे गये थे, वे इस मनुष्यलोक में उत्पन्न होकर सबको कष्ट दे रहे थे; उन्हीं का संहार करने के लिये भगवान् यदुकुल में अवतीर्ण हुए हैं। महात्मा यादवों के एक सौ एक कुल हैं। भगवान् श्रीकृष्ण ही उन सबके नेता और स्वामी हैं तथा सम्पूर्ण यादव भी भगवान् की आज्ञा के अधीन रहकर ऋद्धि-सिद्धि से सम्पन्न हो रहे हैं।
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