पद्मपुराण ‘ पेज -6’

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पद्मपुराण ‘ पेज -6’

देवता, दानव, गन्धर्व, नागऔर राक्षसों कीउत्पत्ति का वर्णन

भीष्मजी ने कहा– गुरुदेव ! देवताओं, दानवों, गंधर्व, नागों और राक्षसों की उत्पत्ति का आप विस्तार के साथ वर्णन कीजिये । पुलस्त्य जी बोले- कुरुनन्दन ! कहते हैं पहले के प्रजा-वर्ग की सृष्टि संकल्प से, दर्शन से तथा स्पर्श करने से होती किन्तु प्रचेताओं के पुत्र दक्ष प्रजापति के बाद मैथुन से प्रजा की उत्पत्ति होने लगी । दक्ष ने आदि में जिस प्रकार प्रजा की सृष्टि की, उसका वर्णन सुनो । जब वे [पहले के नियमानुसार सङ्कल्प आदि से] देवता, ऋषि और नागों की सृष्टि करने लगे किन्तु प्रजा की वृद्धि नहीं हुई, तब उन्होंने मैथुन के द्वारा अपनी पत्नी वीरिणी के गर्भ से साठ कन्याओं को जन्म दिया । उनमें से उन्होंने दस धर्म को, तेरह कश्यप को, सत्ताईस चन्द्रमा को, चार अरिष्टनेमि को, दो भृगुपुत्र को, बुद्धिमान् कृशाश्व को तथा दो महर्षि अङ्गिरा को ब्याह । वे सब देवताओं की जननी हुई । उनके वंश- विस्तार का आरम्भ से ही वर्णन करता हूँ, सुनो । अरुन्धती, वसु, जामी लंबा, भानु, मरुत्वती, सङ्कल्पा, मुहूर्ता, साध्या और विश्वा– ये दस धर्म की पत्नियाँ बतायी गयी हैं । इनके पुत्रों के नाम सुनो । विश्वा के गर्भ से विश्वेदेव हुए । साध्या ने साध्य नामक देवताओं को जन्म दिया । मरुत्वती से मरुत्वान् नामक देवताओं की उत्पत्ति हुई । वसु के पुत्र आठ वसु कहलाये । भानुसे भानु और मुहूर्ता से मुहूर्ताभिमानी देवता उत्पन्न हुए लंबा से घोष, जामी से नागवीथी नाम की कन्या तथा अरुन्धती के गर्भ से पृथ्वी पर होने वाले समस्त प्राणी उत्पन्न हुए । सङ्कल्पा से सङ्कल्पों का जन्म हुआ । अब वसु की सृष्टि का वर्णन सुनो । जो देवगण अत्यन्त प्रकाशमान और सम्पूर्ण दिशाओं में व्यापक हैं, वे वसु कहलाते हैं । उनके नाम सुनो । आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभास ये आठ वसु हैं । ‘आप’ के चार पुत्र हैं- शान्त, वैतण्ड, साम्ब और मुनिबभ्रु । ये सब यज्ञरक्षा के अधिकारी हैं । ध्रुव के पुत्र काल और सोम के पुत्र वर्चा हुए । धर के दो पुत्र हुए- द्रविण और हव्यवाह । अनिल के पुत्र प्राण, रमण और शिशिर थे । अनल के कई पुत्र हुए, जो प्रायः अमिके समान गुणवाले थे । अमिपुत्र कुमार का जन्म सरकंडों में हुआ । उनके शाख, उपशाख और नैगमेय- ये तीन पुत्र हुए । कृत्तिकाओं की सन्तान होने के कारण कुमार को कार्तिकेय भी कहते हैं । प्रत्यूष के पुत्र देवल नाम के मुनि हुए । प्रभास से प्रजापति विश्वकर्माका जन्म हुआ, जो शिल्पकला के ज्ञाता हैं । वे महल, घर, उद्यान, प्रतिमा, आभूषण, तालाब, उपवन और कूप आदि का निर्माण करने वाले हैं । देवताओं के कारीगर वे ही हैं । अजैकपाद्, अहिर्बुध्न्य, विरूपाक्ष, रैवत, हर, बहुरूप, व्यम्बक, सावित्र, जयन्त, पिनाकी और अपराजित- ये ग्यारह रुद्र कहे गये हैं । ये गणों के स्वामी हैं । इनके मानस सङ्कल्प से उत्पन्न चौरासी करोड़ पुत्र हैं, जो रुद्रगण कहलाते हैं । वे श्रेष्ठ त्रिशूल धारण किये रहते हैं । उन सबको अविनाशी माना गया है । जो गणेश्वर सम्पूर्ण दिशाओं में रहकर सबकी रक्षा करते हैं, वे सब सुरभि के गर्भ से उत्पन्न उन्हींके पुत्र पौत्रादि हैं । अब मैं कश्यपजी की  स्त्रियों से उत्पन्न पुत्र- पौत्रों का वर्णन करूँगा । अदिति, दिति, दनु, अरिष्टा, सुरसा, सुरभि, विनता, ताम्रा, क्रोधवशा, हरा, कद्दू, खसा और मुनि ये कश्यपजी की पत्नियों के नाम हैं । इनके पुत्रों का वर्णन सुनो । चाक्षुष मन्वन्तर में जो तुषित नाम से प्रसिद्ध देवता थे, वे ही वैवस्वत मन्वन्तर में बारह आदित्य हुए । उनके नाम हैं – इन्द्र, धाता, भग, त्वष्टा, मित्र, वरुण, अर्यमा, विवस्वान्, सविता, पूषा, अंशुमान् और विष्णु । ये सहस्रों किरणों से सुशोभित बारह आदित्य माने गये हैं । इन श्रेष्ठ पुत्रों को देवी अदिति ने मरीचिनन्दन कश्यप के अंश से उत्पन्न किया था । कृशाश्व नामक ऋषि से जो पुत्र हुए, उन्हें देव- प्रहरण कहते हैं । ये देवगण प्रत्येक मन्वन्तर और प्रत्येक कल्प में उत्पन्न एवं विलीन होते रहते हैं । भीष्म ! हमारे सुनने में आया है कि दिति ने कश्यपजी से दो पुत्र प्राप्त किये, जिनके नाम थे- हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष । हिरण्यकशिपु से चार पुत्र उत्पन्न हुए– प्रह्लाद, अनुहाद, संहाद और हाद । प्रह्लाद के चार पुत्र हुए आयुष्मान्, शिबि, वाष्कलि और चौथा विरोचन । विरोचन को बलि नामक पुत्र की प्राप्ति हुई । बलि के सौ पुत्र हुए । उनमें बाण जेठा था । गुणोंमें भी वह सबसे बढ़ा-चढ़ा था । बाणके एक हजार बाँहें थीं तथा वह सब प्रकार के अस्त्र चलाने की कला में भी पूरा प्रवीण था । त्रिशूलधारी भगवान् शङ्कर उसकी तपस्या से सन्तुष्ट होकर उसके नगर में निवास करते थे । बाणासुर को ‘महाकाल’ की पदवी तथा साक्षात् पिनाकपाणि भगवान् शिव की समानता प्राप्त हुई- वह महादेव जी  का सहचर हुआ । हिरण्याक्ष के उलूक, शकुनि, भूतसन्तापन और महाभीम- ये चार पुत्र थे । इनसे सत्ताईस करोड़ पुत्र-पौत्रों का विस्तार हुआ । वे सभी महाबली, अनेक रूपधारी तथा अत्यन्त तेजस्वी थे | दनु ने कश्यपजी से सौ पुत्र प्राप्त किये । वे सभी वरदान पाकर उन्मत्त थे । उनमें सबसे ज्येष्ठ और अधिक बलवान् विप्रचित्ति था । दनु के शेष पुत्रों के नाम स्वर्भानु और वृषपर्वा आदि थे । स्वर्भानु से सुप्रभा और पुलोमा नामक दानव से शची नाम की कन्या हुई । मय के तीन कन्याएँ हुई- उपदानवी, मन्दोदरी और कुहू । वृषपर्वा के दो कन्याएँ थीं— सुन्दरी शर्मिष्ठा और चन्द्रा । वैश्वानर के भी दो पुत्रियाँ थीं- पुलोमा और कालका । ये दोनों ही बड़ी शक्तिशालिनी तथा अधिक सन्तानों की जननी हुई । इन दोनों से साठ हजार दानवों की उत्पत्ति हुई । पुलोमा के पुत्र पौलोम और कालका के कालखञ्ज (या कालकेय) कहलाये । ब्रह्माजी से वरदान पाकर ये मनुष्यों के लिये अवध्य हो गये थे और हिरण्यपुर में निवास करते थे, फिर भी ये अर्जुन के हाथ से मारे गये । * विप्रचित्तिने सिंहिका के गर्भ से एक भयङ्कर पुत्र को जन्म दिया, जो सँहिकेय (राहु) के नामसे प्रसिद्ध था । हिरण्यकशिपु की बहिन सिंहिका के कुल तेरह पुत्र थे, जिनके नाम ये हैं- कंस, शङ्ख, नल, वातापि, इल्वल, नमुचि, खसम, अञ्जन, नरक, कालनाभ, परमाणु, कल्पवीर्य तथा दनुवंशविवर्धन । संहाद दैत्य के वंश में निवातकवचों का जन्म हुआ । वे गन्धर्व, नाग, राक्षस एवं सम्पूर्ण प्राणियों के लिये अवध्य थे । परन्तु वीरवर अर्जुन ने संग्राम- भूमि में उन्हें भी बलपूर्वक मार डाला । ताम्रा ने कश्यप जी के वीर्य से छ: कन्याओं को जन्म दिया, जिनके नाम हैं- शुकी, श्येनी, भासी, सुगृध्री, गृधिका और शुचि । शुकी ने शुक और उल्लू नाम वाले पक्षियों को उत्पन्न किया । श्येनी ने श्येनों (बाजों) को तथा भासी ने कुरर नामक पक्षियोंको  जन्म दिया । गृध्री से गृध्र और सुग्धी से कबूतर उत्पन्न हुए तथा शुचि ने हंस, सारस, कारण्ड एवं प्लव नाम के पक्षियों को जन्म दिया । यह ताम्रा के वंश का वर्णन हुआ । अब विनता की सन्तानों का वर्णन सुनो | पक्षियों में श्रेष्ठ गरुड और अरुण विनता के पुत्र हैं तथा उनके एक सौदामनी नाम की कन्या भी है, जो यह आकाश में चमकती दिखायी देती है । अरुण के दो पुत्र हुए- सम्पाति और जटायु । सम्पाति के पुत्रों का नाम बभ्रु और शीघ्रग हैं । इनमें शीघ्रग विख्यात हैं । जटायु के भी दो पुत्र हुए- कर्णिकार और शतगामी । वे दोनों ही प्रसिद्ध थे । इन पक्षियों के असंख्य पुत्र-पौत्र हुए । सुरसा के गर्भ से एक हजार सपों की उत्पत्ति हुई तथा उत्तम व्रत का पालन करने वाली कद्रू ने हजार मस्त कवाले एक सहस्र नागों को पुत्र के रूप में प्राप्त किया । उनमें छब्बीस नाग प्रधान एवं विख्यात हैं— शेष, वासुकि, कर्कोटक, शङ्ख, ऐरावत, कम्बल, धनञ्जय, महानील, पद्य, अश्वतर, तक्षक, एलापत्र, महापद्म, धृतराष्ट्र, बलाहक, शङ्खपाल, महाशङ्ख, पुष्पदन्त, सुभावन, शङ्खरोमा, नहुष, रमण, पाणिनि, कपिल, दुर्मुख तथा पतञ्जलिमुख । इन सबके पुत्र-पौत्रों की संख्या का अन्त नहीं है । इनमें से अधिकांश नाग पूर्वकाल में राजा जनमेजय के यज्ञ- मण्डप में जला दिये गये । क्रोधवशा ने अपने ही नाम के क्रोधवशसंज्ञक राक्षस समूह को उत्पन्न किया । उनकी बड़ी-बड़ी दाढ़ें थीं । उनमें से दस लाख क्रोधवश भीमसेन के हाथ से मारे गये । सुरभि ने कश्यपजी के अंश से रुद्रगण, गाय, भैंस तथा सुन्दरी स्त्रियों को जन्म दिया । मुनि से मुनियों का समुदाय तथा अप्सराएँ प्रकट हुई । अरिष्टा ने बहुत- से किन्नरों और गन्धर्वो को जन्म दिया । इरासे तृण, वृक्ष, लताएँ और झाड़ियाँ इन सबकी उत्पत्ति हुई । खसा ने करोड़ों राक्षसों और यक्षों को जन्म दिया । भीष्म ! ये सैकड़ों और हजारों कोटियाँ कश्यपजी की सन्तानों की हैं । यह स्वारोचिष मन्वन्तर की सृष्टि बतायी गयी है । सबसे पीछे दितिने कश्यपजी से उनचास मरुद्गणों को उत्पन्न किया, जो सब-के-सब धर्म के ज्ञाता और देवताओं के प्रिय हैं ।