श्रीमद्भगवत गीता

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय-1

“अर्जुन ने कहा – हे अच्युत ! जब तक मैं युद्ध की कामना से खड़े हुए इन समस्त वीरों का निरीक्षण न कर लूँ एवं इस युद्ध में किन – किन वीरों के साथ मुझे युद्ध करना होगा और इस युद्ध में धृतराष्ट्र के दुर्बुद्धिपरायण पुत्रों के हितैषी एकत्रित योद्धाओं का अवलोकन न कर लूँ तब तक आप मेरे रथ को दोनों सेनाओं के मध्य खड़ा करें ।” (21-22-23)

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय – 2

अध्याय – 2 सांख्ययोग
“जो तापत्रय के उपस्थित होने पर भी उद्विग्न नहीं होता, सुख के उपस्थित होने पर भी स्पृहाहीन रहता है और राग, भय व क्रोध से रहित है, वह मुनि स्थितधी (मुक्त जीव) कहलाता है ।”

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय – 3

इन्द्रियाँ काम के कार्यकलापों के विभिन्न द्वार हैं । काम का निवास शरीर में है , किन्तु उसे इन्द्रिय रूपी झरोखे प्राप्त हैं । अतः कुल मिलाकर इन्द्रियाँ शरीर से श्रेष्ठ हैं । श्रेष्ठ चेतना या कृष्णभावनामृत होने पर ये द्वार काम में नहीं आते ।

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय-6

ध्यानयोग

“समस्त योगियों में भी मेरे मतानुसार वह योगी सर्वश्रेष्ठ है जो श्रद्धालु बनकर मुझमें आसक्त मन के द्वारा मुझे भजता है ।”

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय-13

प्रकृतिपुरुषविवेकयोग

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय-16

दैवासुरसम्पद्विभागयोग

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय-17

श्रद्धात्रयविभागयोग

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